Kavitā meṃ prakr̥ti-citraṇa: siddhānta-samikshā evaṃ vivecana

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Naiśanala Pabliśiṅga Hāusa, 1954 - 230 pagini

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अथवा अधिक अपनी अपने अब अलंकार आदि आनन्द इन इस इसी उद्दीपन उनकी उनके उस उसका उसकी उसके उसे एक कर करता है करते हैं करने कल्पना कवि कवि को कविता कविता में कवियों का कारण कालिदास काव्य काव्य में किन्तु किया है किसी की कुछ के प्रति के रूप में के लिए के साथ केवल को कोई क्षेत्र गई गया चित्रण जब जल जा जाता है जाती जी जीवन जो तक तथा तरह तो था दिखाई दिया दृश्य दृष्टि से दोनों द्वारा नक्षत्र नहीं ने पंत पर पूर्ण प्रकार प्रकृति के प्रभाव प्रयोग प्रसाद प्राकृतिक प्राचीन प्रेम बहुत बात भाव मन मनुष्य मानव में प्रकृति में भी मैं यदि यह या रस रहा रही रहे रूपों वर्णन वस्तु वह वाले वाल्मीकि विचार वे शुक्ल सकता सब सम्बन्ध सुन्दर से सौन्दर्य हम हमारे हिन्दी ही हुआ हुई हुए हृदय है और है कि हैं हो होगा होता है होती होते

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